क्र.         विषय वस्तुृ                      विवरण

1               वेद                      विद्यार्थियों को ऋग्वेद के अग्नि, इंद्र, विश्वामित्र नदी संवाद, वाक् पर्जन्य आदि देवताओं से सम्बंधित सूक्तों का परिचय प्राप्त हुआ।

                                                     नासदीय, पुरुष आदि दार्शनिक सूक्तों का ज्ञान प्राप्त करने के साथ सृष्टि प्रक्रिया का परिचय प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त यजुर्वेदीय तथा सामवेदीय सूक्तों काभी ज्ञान प्राप्त                                                           हुआ।

2 पालि, प्राकृत तथा भाषा विज्ञान     विद्यार्थियों को पालि भाषा अभिलेखीय प्राकृत भाषा का ज्ञान प्राप्त हुआ। भाषाशास्त्रीय ंिचंतकों एवं उनकी रचनाओं का ज्ञान प्राप्त हुआ। भाषा परिवार एवं भाषा विज्ञान का                                                        ज्ञान प्राप्त हुआ।

                                                      शब्द परिवर्तन, अर्थ परिवर्तन, भाषा प्रयोग के संबंध में समुचित दृष्टिकोण का विकास हुआ।

3         भारतीय दर्शन               भारतीय दर्शन के अंतर्गत आस्तिक एवं नास्तिक दर्शन का परिचय, तर्क भाषा के आधार पर प्रमा एवं प्रमाण का ज्ञान प्राप्त हुआ। वेदांतसार में प्रतिपादित वेदांत के सिद्धांतों                                                          का ज्ञान प्राप्त हुआ।

                                                       छात्रों में दार्शनिक दृष्टिकोण विकसित हुई। भारतीय दर्शन के प्रति समीक्षात्मक दृष्टि का विकास हुआ। 

4 सौन्दर्य शास्त्र / साहित्य शास्त्र        छात्रों को साहित्य शास्त्र का परिचय प्राप्त हुआ। काव्य भेद, काव्य गुण, रस एवं अलंकारों का ज्ञान प्राप्त हुआ। इससे छात्रों में साहित्य की समीक्षा करने का गुण प्राप्त हुआ।

                                                       भारत मुनि विरचित नाट्य शास्त्र के प्रमुख सिद्धांतों का परिचय प्राप्त किया। नाट्यगृह, पंचमवेद की उत्पत्ति आदि के बारे में ज्ञान प्राप्त हुआ।

5               काव्य                        विद्यार्थियों को महाकवि कालिदास जी के व्यक्तित्व एवं उनकी रचनाओं का परिचय प्राप्त हुआ। मेघदूत का परिचय एवं भौगोलिक क्षेत्र का परिचय प्राप्त हुआ। शूद्रक के                                                             मृच्छकटिक से छात्रों में सामायिक स्थिति तथा उसके आधार पर चारुदत्त के जीवन के बारे में ज्ञान मिला। नैषधीयचरित में राजा नल के वैभव व प्रताप का ज्ञान प्राप्त हुआ।


//तृतीय एवं चतुर्थ//

क्र.                 विषय वस्तुृ                                               विवरण

1            इतिहास तथा निबंध                           रामायण एवं महाभारत में वर्णित मानवीय सामाजिक एवं राष्ट्रीय मूल्यों की वर्तमान युग में प्रासंगिकता का बोध हुआ। विद्यार्थियों को जीवनशैली एवं मानवीय                                                                                मूल्यों का बोध हुआ। नल चम्पू के माध्यम से चम्पूकाव्यों की गद्य/पद्य मिश्रित शैली का बोध हुआ।

2            ग्रन्थ एवं चिन्तक परंपरा                   औचित्य विचार चर्चा के माध्यम से औचित्य को ही रससिद्ध काव्य का जीवित या आधारभुत तत्व माना है। काव्य आदर्श के माध्यम से काव्य के भेद,                                                                                           आख्यायिका, कथा, गद्य साहित्य की कोटियों का परिचय प्राप्त हुआ। काव्य मीमांसा के द्वारा छात्रों को कवि रहस्य का ज्ञान प्राप्त होता है।

3           रसध्वनि सिद्धान्त                           आनंदवर्धन प्रणीत ध्वनि सद्धिांत का ज्ञान प्राप्त हुआ। छात्रों में काव्यशास्त्रीय समीक्षात्मक दृष्टि का विकास हुआ। मम्मट के काव्यप्रकाश से रस, रस दोष, गुण                                                                            अलंकार आदि का ज्ञान प्राप्त हुआ। काव्य शास्त्रीय सिद्धान्त का ज्ञान प्राप्त हुआ।

4           साहित्य सिद्धान्त                          साहित्य दर्पण के प्रथम परिच्छेद का परिचय प्राप्त हुआ। आचार्य विश्वनाथ के मत के अनुसार काव्य गुण, भेद, प्रयोजन का ज्ञान तथा मम्मट के सिद्धांतों का                                                                                 किस प्रकार खंडन किया इसका समीक्षात्मक तथा तर्कात्मक अध्ययन प्राप्त हुआ।

5 गद्य एवं नाट्य शास्त्र, नाट्य एवं नाटिका          नाट्यशास्त्र के प्रमुख सिद्धांतों का ज्ञान प्राप्त हुआ। दशरूपक का ज्ञान प्राप्त करने के साथ ही नायक तथा नायिका के भेद आदि का ज्ञान प्राप्त हुआ तथा                                                                                  समीक्षात्मक दृष्टि का विकास हुआ। रत्नावली नाटिका के माध्यम से कर्तव्यनिष्ठा एवं राष्ट्रीय मूल्यों का ज्ञान प्राप्त हुआ तथा प्रमुख नाट्यकृतियों का परिचय प्राप्त                                                                          हुआ। महाकवि बाणभट्ट रचित कादंबरी गं्रथ के माध्यम से गद्य शैली की समझ विकसित हुई है। भरतमुनि विरचित नाट्य शास्त्र के प्रमुख सिद्धांतों का परिचय                                                                          प्राप्त किया। नाट्यगृह, पंचम वेद की उत्पत्ति आदि के बारे में ज्ञान प्राप्त हुआ।

क्र. विवरण

1 संस्कृत ग्रंथो के अध्ययन के माध्यम से प्राचीन भारतीय धर्म साहित्य और इतिहास का उन्नत ज्ञान।

2 संस्कृत, पालि बौद्ध लौकिक व वैदिक संस्कृत ग्रंथों के शाब्दिक विश्लेषण का अभ्यास।

3 संस्कृत भाषा का व्यवस्थित और यथोचित ज्ञान, भावात्मक और काव्य सौकत का पूर्ण विकास।

4 अनुसन्धान कला का विकास।

5 साहित्य पर टिप्पणी लेखन सूत्रसिद्धि, संवाद लेखन, विज्ञापन लेखन में कार्य -ः

मानवीय मूल्य संवर्धन, नैतिक सामाजिक एवं राष्ट्रीय मूल्यों का संवर्धन।

राष्ट्रीय एकात्मता, समानता, बंधुता, उत्तरदायित्व और वैज्ञानिकता का विकास।

अध्यापक, प्राध्यापक, धर्मगुरु, धर्माचार्य, कथावाचक, परामर्शदाता, जीवन प्रबंधन, गुरु संस्कृत निर्देशक आदि में कार्य।